नहीं हैं जिनके भाई

नहीं हैं जिनके भाई,

वो बहनें उदास होतीं।

आता है भाई दूज जब,

तो बहनें हैं खूब रोतीं।


काश होता ऐसा भाई,

जो मेरा साथ देता।

होती उदास जो मैं,

आकर मुझे हँसाता।


दुःख दर्द बाँट लेता,

मुझको गले लगाता।

छुपाती गम जो अपने,

बिन कहे समझ जाता।


बनकर वो कन्हैया,

मेरी लाज वो बचाता।

भरी सभा में आकर,

दुष्टों को मज़ा चखाता।


छलके जो मेरे आँसू,

दिल उसका भी रोता।

मुश्किल घड़ी में भाई,

आ मेरी ढाल बनता।


मस्तक तिलक लगाकर,

लेती बलैयां उसकी।

दौलत जहां की सारी,

मैं उसपे वार देती।


कलयुग है ऐसा आया,

भाइयों ने रंग दिखाया।

बहनों को ही अपनी,

कर दिया है पराया।


किस्से सुने कुछ ऐसे,

रहम करते ना भाई।

हैं बहनें जब तड़पती,

उनको दया ना आई।


माना है बहन पराई,

तेरा घर छोड़ आई।

पर याद रखना भैया,

जग में तेरे संग आई।


जो खून के हैं रिश्ते,

यूँ तोड़ें नहीं जाते।

आधे सफर में ही,

छोड़ें नहीं यूँ जाते।


वादा है मेरा रब से,

मैं दिखाऊँ भाई बनके।

माँ-बाप और बहन का,

मैं दिखाऊँ सहारा बनके।


भाई-बहन का रिश्ता,

है पावन जहां में सबसे।

सलामत रहे ये रिश्ता,

करती दुआ ये रब से।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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