विकास की पहचान

साधन हैं  जितने  जग  में,

                 उनमें  अति  उत्तम  मानव  जानो।

कौशल दक्ष स्वकर्म करैं,

                   मति हीन न दीन, समाज - सयानों।।

देश सशक्त स्वतंत्र वही, 

                  जिनके जन स्वस्थ सुशिक्षित मानो।

भारत में कहुँ खोय गयो,

                  " निरपेक्ष" विकास सही पहचानो।।

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भीख नहीं माँगे कोई, बालक जो भारतीय,

                चाकरी से बाल वृन्द, मुक्त कर दीजिये।

उन्नत भविष्य की हैं, कड़ियाँ ये नौनिहाल,

          अच्छी शिक्षा स्वास्थ्य का, प्रबंध कर दीजिये।

मेटिये कलंक आप,अन्धकार अभिशाप,

                  शिक्षक किताब अच्छे-विद्या घर दीजिये।

सोने की चिरइया बने, फिर से हमारा देश,

                   "निरपेक्ष" साधनों के, ढेर भर दीजिये।।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।



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