पर्यावरण दिवस

सब कुछ बदल रहा, बदल गया मानव,

भूल के सारी मर्यादा बनने लगा है दानव।

हरियाली को मिटाकर भला कैसे रह पाएगा,

प्रकृति का करके नुकसान साँसों को पछताएगा।।


हरियाली की चादर कैसी रही है फैली,

दुर्गुणों से इसको करो मत तुम मैली।

5 जून को याद करने पर्यावरण दिवस मनाते,

हरे-भरे जंगल हों अब हर एक गली।।


भूल गए हम अपना कर्तव्य तभी इसे मनाते,

ना होते पेड़-पौधे तो मन कैसे बहलाते।

नैसर्गिक सौंदर्य इसका सदा हमें लुभाता,

बताओ फिर क्यों हम इसे नुकसान पहुँचाते।।


बचाना पर्यावरण को होगा ध्येय हमारा,

समय के साथ हो इस समस्या का निपटारा।

रासायनिक तत्वों का कम करना है प्रयोग,

तभी प्रदूषण से बच पाएगा जग प्यारा।।


रात दिन पेड़ लगाकर, करें उद्देश्य की पूर्णता,

हर जगह होगी स्वच्छ वायु की उपलब्धता।

कसम खाएं कि साँसों की रफ्तार न रुकने देंगे,

प्रकृति देवी की गुहार सुनो, इसमें है स्पष्टता।।


रचयिता

नम्रता श्रीवास्तव,

प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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