४२- नवीन पोरवाल प्रा० वि० बरीपुर मॉफी, औरैया

मित्रों आज हम आपको एक ऐसे शिक्षक भाई का परिचय करा रहे हैं। जिन्होंने मात्र कुछ माह में एक शून्य की ओर निहारते विद्यालय को शिखर का रास्ता दिखा दिया। इस प्रयास के लिए साथी अध्यापक कहने लगे कि--
"ये तो पगला गया"
मित्रों यही वह क्षण होते हैं प्रत्येक महापुरुष के जीवन की महानता और सफलता के, जब लोग कहने लगे कि यह तो पगला गया।
लेकिन सही अर्थों में यदि सोचा जाए तो पागल कौन?
  जिसे यह ज्ञान न रहे कि हमारे विद्यालय का बच्चा यदि हमने नहीं पढ़ाया तो उसका जीवन शिक्षा के अभाव में दुखों की मूर्ति बन कर रह जायेगा। जो एक मानवीय सभ्यता को धोखा देने के समान है।
 
फिर भी हमारे सकारात्मक सोच और ऊर्जा के धनी शिक्षक ने एक ऐसे विद्यालय का कायाकल्प कर दिया।
तो आइये जानते हैं उन्हीं के शब्दों में सकारात्मक प्रयासों को---
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मैं नवीन कुमार पोरवाल  प्राथमिक विद्यालय बरीपुर माफ़ी, भाऊपुर  जनपद- औरैया से।
इस स्कूल में प्रमोशन द्वारा प्र.अ. के पद पर  01/07/2015 को आया था। उस समय स्कूल की स्थिति अच्छी नहीं थी। विद्यालय जर्जर हालत में था। ,बच्चों के पास बैठने को चटाई भी नहीं थी। स्कूल में नामांकित 58 बच्चों के सापेक्ष उपस्थिति 30-40% तक थी। बच्चों को पढाई में व MDM में कोई रूचि नहीं थी। बच्चे MDM बहुत ही बेढंग से इधर- उधर बैठ कर खाते थे। स्कूल का शैक्षिक स्तर अत्यंत न्यून था। गांव के लोगों को भी स्कूल से कोई मतलब नहीं था। वह अपने बच्चों को स्कूल भेजने में कोई रूचि नहीं रखते थे। विद्यालय स्टाफ में मेरे अलावा दो समायोजित स.अ. श्रीमती ममता सिंह, श्रीमती आरती द्विवेदी और एक शिक्षामित्र श्रीमती रेखा राठौर है।
स्कूल का स्तर देख कर मैं परेशान हो गया था। मैं कुछ करना चाहता था। इसलिए जुलाई के पहले सप्ताह में ही पूरे गाँव की एक मीटिंग बुलाई। जिसमें मैंने अपने स्टाफ और रसोइयों से अपने दायित्व के निष्ठापूर्वक निर्वाहन की अपील की और गांव वालों से निवेदन किया क़ि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें और 15 दिन में अन्तर देखें। तो बच्चे विद्यालय में भेजें और आगे पढ़ायें यदि आपको लगे कि बच्चे बेहतर सीखने का प्रयास कर रहे हैं। तो हमारा सहयोग कर इस विद्यालय को आदर्श बनायें। जो हमारी इच्छा है।
इस काम में हमारे स्टाफ ने मेरा बहुत सहयोग किया और सभी लोग जोश व नवाचार के साथ पढ़ाने में जुट गए, class -1, 2  के बच्चों को खेल-खेल में पढना सिखाया गया। रसोइयों से अच्छा व स्वादिष्ट भोजन बनवाया गया। बच्चों को खाना- खाने के लिए प्लेट, चम्मच व चटाइओं की व्यवस्था की गयी, खाना- खाने से पहले व बाद में साबुन से हाथ व बर्तन धुलने की आदत डलवाई। और बिना शोरगुल के सामूहिक रूप से बैठकर भोजन करना सिखाया। स्कूल की जर्जर हालत को दूर करने के लिए मरम्मत कराई। फर्नीचर सही कराया व रंगाई- पुताई करायी। एक माह में ही विद्यालय का परिवेश बदल चुका था। हालाँकि ये सब करने के कारण हमारे कुछ साथी हमें पागल समझने लगे थे। इस सब की परवाह किये बगैर में अपने काम को अंजाम देने में लगा रहा और अंततः मुझे सफलता मिल ही गयी।
मेरे स्कूल ने क्षेत्र में अब  अपनी एक अलग पहचान बना ली है। गांव के जो बच्चे कॉन्वेंट स्कूल जाते थे वह सभी अब हमारे स्कूल में ही पढ़ते हैं। स्कूल में अच्छे व गुणवत्तापूर्ण भोजन के साथ-साथ शैक्षिक स्तर बढ़ गया है। नामांकन बढ़ कर 63 हो गया जिसमें बच्चों की उपस्तिथि भी लगभग 90% रहने लगी है।
mdm का खाद्यान्न माह समाप्त होने से पहले ही ख़त्म हो जाता था। लेकिन हमारे गांव के डीलर श्री संतोष कटियार जी ने हमारे उत्साह को कम नहीं होने दिया व अपने पास से अतरिक्त खाद्यान्न की व्यवस्था की। हमारे स्टाफ ने भी बच्चों को नवाचार का प्रयोग करते हुए स्कूल व् पढ़ाई के प्रति लगाव बढ़ाया। समय-समय पर विभिन्न खेल प्रतियोगिताएँ, सुलेख, रंगोली और संगीत आदि का आयोजन किया जाता है। जिसमें बच्चों को प्रोत्साहन के रूप में टॉफी, चॉकलेट, कॉपी, पेन, पेन्सिल, बॉक्स और बैग आदि वितरित किये जाते है।
स्कूल में सभी पर्व/त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है। इन सभी कार्यो में धन हम अपने पास से खर्च करते है। क्यों की इतना सब करने से मुझे जो आत्मसंतुष्टि मिलती है। वह शायद चारधाम की यात्रा व कुम्भ स्नान में भी न मिले।स्कूल को एक नई पहचान देने में हमारे स्टाफ व् रसोइयो का विशेष योगदान है। जो अपने दायित्यों का पूरे मन से जोश से निर्वाहन कर रहे है। मैं तो केवल एक माध्यम हूँ। चूँकि मेरा स्कूल बहुत छोटा है अतः सोच कर भी और ज्यादा कुछ कर नहीं सकता। क्योंकि स्कूल में दो कमरों के अतिरिक्त कोई जमीन नहीं है, वाउंड्री भी नहीं है। मैं स्कूल के पास की ज़मीन प्राप्त करने का प्रयास ग्राम प्रधान श्री विमल कटियार व गांव के लोगों से कर रहा हूँ।  जिससे स्कूल की वाउंड्री बन सके व कुछ पेड़ पौधे लग सके।
आप सबसे हमारा निवेदन है कि--
"जिनके कारण हम कुछ हैं, उनके लिए कुछ करना हमारा नैतिक और मानवीय धर्म है।"
ऐसा युवा जोश और सकारात्मक सोच के धनी शिक्षक भाई नवीन कुमार पोरवाल जी और उनके सहयोगी विद्यालय परिवार को बहुत बहुत शुभकामनाएं!
मित्रों आप भी बेसिक शिक्षा विभाग के सम्मानित शिक्षक हैं तो इस मिशन संवाद के माध्यम से शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए हाथ से हाथ मिला कर अभियान को सफल बनाने के लिए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोगी बनें और शिक्षक धर्म का पालन करें। हमें विश्वास है कि अगर आप लोग हाथ से हाथ मिलाकर संगठित रूप से आगे बढ़े तो निश्चित ही बेसिक शिक्षा से नकारात्मकता की अंधेरी रात का अन्त होकर रोशनी की नयी किरण के साथ नया सबेरा आयेगा।
हम सब हाथ से हाथ मिलायें।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
नोटः- यदि आप या आपके आसपास कोई बेसिक शिक्षा का शिक्षक अच्छे कार्य कर शिक्षा एवं शिक्षक को सम्मानित स्थान दिलाने में सहयोग कर रहा है तो बिना किसी संकोच के अपने विद्यालय की उपलब्धियों को हम तक पहुँचाने में सहयोग करें। आपकी ये उपलब्धियाँ हजारों शिक्षकों के लिए नयी ऊर्जा और प्रेरणा का काम करेंगी। इसलिए बेसिक शिक्षा को सम्मानित स्थान दिलाने के लिए हम सब मिशन संवाद के माध्यम से जुड़कर एक दूसरे से सीखें और सिखायें। बेसिक शिक्षा की नकारात्मकता को दूर भगायें।
*उपलब्धियों का विवरण और फोटो भेजने का WhatsApp no- 9458278429 है।*

साभार: शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ
विमल कुमार
कानपुर देहात
26/06/2016

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  1. शिक्षा का उत्थान
    शिक्षक का सम्मान
    मानवता का कल्याण
    मिशन शिक्षण संवाद

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