बाल प्रेम का ममतामयी संसार दुर्गेश कुमार सीतापुर

★बाल प्रेम का ममतामयी संसार बेसिक शिक्षा★
मित्रों आज जहाँ बेसिक शिक्षा को बदनाम करने लिए अचानक विद्यालय में छापा मारी अभियान चलाकर भय का माहौल पैदा करके रिपोर्ट मीडिया पर प्रसारित की जाती है। हमें नहीं लगता कि उनका उद्देश्य बेसिक शिक्षा में सुधारात्मक हैं। क्योंकि सुधार के लिए चाहिए प्रेम और प्रोत्साहन जो किसी को दिखाई नहीं देता है, सिवाय दण्ड और भय का माहौल बनाने के और न ही कोई मीडिया सहयोगी शिक्षक से उनकी व्यवहारिक स्थिति को बताता हुआ वीडियो प्रसारित होता है। हमारे उन अनमोल रत्न शिक्षकों के प्रयास भी बहुत कम ही नजर आते हैं जो बेसिक शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान के लिए अपना वेतन भी बलिदान करते हैं। इन्हीं अनमोल रत्नों के बीच से आज हम अपने मिशन शिक्षण संवाद के सहयोगी शिक्षक साथी दुर्गेश कुमार (स०अ०) प्रा० वि० मत्तेपुर, सिधौली, सीतापुर की अनमोल बाल प्रेम सेवा से आप सबका परिचय करा रहे हैं।
तो आइए जानते हैं दुर्गेश कुमार जी का बेसिक शिक्षा के प्रति समर्पित जीवन एवं बाल प्रेम का सुखद संसार:--
सर जी मैं लखनऊ से बाइक से विद्यालय जाता हूँ। घर से विद्यालय 46 किलोमीटर दूर पड़ता है। अगस्त-2013 से अप्रैल-2016 तक मैं इस विद्यालय में इं०प्र०अ० था। बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए मैंने उनसे वायदा किया था कि रोज विद्यालय आने वाले बच्चों को मैं लखनऊ घुमाऊँगा।  इस बात का मैंने अपने स्टाफ से जिक्र किया।  लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हुआ। हमें अपने द्वारा बच्चों से किया गया वायदा बार- बार परेशान करने लगा। फिर एक दिन इस बात को अपनी पत्नी से शेयर किया तो उन्होंने सुझाव दिया क्यों न आप शनिवार और रविवार दो बच्चों को लाओ। खाना-पीना, पढ़ाई , स्वच्छता हम सिखायेंगे आप बच्चों को घुमाइएगा। 25 मार्च-2017 से अवकाश के एक दिन पूर्व बच्चों को अपने घर लाकर शहर का रहन सहन दिखाते एवं घुमाते हैं। बच्चों का जाने का मन नहीं करता। एक छोटा बच्चा तो जिद्द करके पाँच दिन रूका। बच्चों के खाने-पीने की सभी वस्तुएँ हमारी पत्नी स्वयं करती है। मैंगो शेक, माइक्रोनी, फल, बच्चों के पसन्द के बिस्कुट आदि। बच्चों के लिए नाइट सूट, स्लीपर आदि की व्यवस्था की गयी है। अगर बच्चा ढंग के कपड़े नहीं लाता है तो उसके लिए कपड़े व सैन्डिल खरीदी जाती है। इससे हमने देखा कि बच्चों में विद्यालय के प्रति सुखद प्रेमाकर्षण बढ़ा। वह अब पहले से अधिक पढ़ने के प्रति सक्रिय नजर आ रहे हैं। हमें भी लगा कि बेसिक शिक्षा में कहीं न कहीं गरीबी भी एक बाधक है जो बच्चों को विरासत में मिल जाती है वहीं रही कसर भारतीय संविधान में समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध दोहरी शिक्षा व्यवस्था, जो गरीब और अमीर के नाम पर बड़ी ही ईमानदारी और चालाकी से अलग- अलग चल रही है पूरी कर देती है।
साभार: 
दुर्गेश कुमार
मिशन शिक्षण संवाद सीतापुर
मित्रों आपने देखा कि वह बेसिक शिक्षा का शिक्षक ही है जो गरीब बच्चों के बीच रहकर बालमन की व्यथा कथा से दुखी होकर, तमाम जोखिम लेकर भी अपना वेतन खर्च कर देता है। फिर भी बेसिक शिक्षा को मिलता है नकारात्मकता जैसा दुखद कलंक। क्या इस देश में कोई और वेतनभोगी विभाग है जो विभाग के सम्मान की रक्षा में अपना वेतन लगा देता हो।
गलत को गलत कहना तो सही है लेकिन जब न्यूज बनती है आपकी बेसिक शिक्षा के ये हाल तो क्या गुजरती होगी उन पर जिनका जीवन ही बेसिक शिक्षा के लिए समर्पित है।
मित्रों आपके द्वारा या आपके किसी साथी शिक्षक द्वारा ऐसे बेसिक शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान को प्रेरित करने वाले कार्य किये जा रहे हों, तो उन्हें बिना किसी संकोच के मिशन शिक्षण संवाद के नम्बर- 9458278429 अथवा shikshansamvad@gmail.com पर भेज दें।

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