युग परिवर्तक स्वामी विवेकानन्द

विश्व पटल पर जब गूँजा था, 

स्वामी का उद्बोध वचन।

गर्वित हुई थी धरा हिंद की,

गूँज उठा था नील गगन।।


कांति युक्त आभामय चेहरा,

हृदय में करुणा, आनंद था।

वस्त्र गेरुआ छवि सन्यासी,

नाम विवेकानन्द था।।


सत्य सनातन धर्म का वाहक,

भारत का लाल निराला था।

अध्यात्म और योग का साधक,

दिव्य नरेंद्र मतवाला था।।


आत्म भक्ति ही शक्ति है,

सकल विश्व को बतलाया।

वही प्रेरणा पुँज हमारे,

युग परिवर्तक कहलाया।।


रचयिता

डॉ0 शालिनी गुप्ता,

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय मुर्धवा,

विकास खण्ड-म्योरपुर, 

जनपद-सोनभद्र।



Comments

  1. The best Poem-👌🏻Respected Mam Congratulations-👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🙏

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