लुई ब्रेल: जन्म दिवस

कैसे दूँ धन्यवाद और कैसे प्रकट करूँ आभार,

लुई ब्रेल नमन करूँ नेत्रहीनों के कर्णधार।

4 जनवरी 1809 में फ्रांस में जन्म पाया,

आर्थिक तंगी के कारण मेहनत बना हथियार।।


लकड़ी की काठी बनाने में चाकू का हुआ प्रहार,

 लुइस की एक आँख से बही रक्त की धार।

साधनहीनता के कारण एक आँख गँवाई,

दूजी आँख से भी धुंधला होने लगा था प्रकाश।।


हार नहीं मानी लुइस ने इरादा किया अटल,

कैप्टन चार्ल्स बार्बर से मिलने की इच्छा प्रबल।

आत्मविश्वास बालक का कर रहा था विस्मित,

अथक परिश्रम करके बालक हुआ सफल।।


संघर्षरत रहे परंतु लिपि को मान्यता नहीं मिली,

43 वर्ष की अवस्था में 1852 में जीवन से हार मिली।

शिक्षाशास्त्रियों द्वारा इनकी गंभीरता नहीं समझी गई,

राष्ट्रीय सम्मान के साथ उनको विदाई मिली।।


डाक टिकट जारी हुआ सम्मान के तौर पर,

2009 में 200 वर्ष पूरे हुए याद किया गया गौर से।

मृत्यु के बाद मूल्यांकन हुआ उनके कार्यों का,

आज भी याद किए जाते हैं जीवनदाता के तौर पर।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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