कल्याण करो

जल्लाद बने क्यों लोग यहाँ,

क्यों जंग के हो गए दीवाने?

कुचल कर जिंदा लाशों पर,

भर रहे क्यों अपने खजाने?


क्या बीत रही मानवता पर,

सुन चीत्कार इन्सानों की।

बर्बादी की दे रही गवाही,

ध्वस्त दीवारें मकानों की।


कसूर क्या था इन बेचारो का,

क्यों मिली सजा लाचारों को?

अपने स्वार्थ सिद्धि की खातिर,

क्यों खींच दिया तलवारों को?


किसी के माई बाप चल बसे,

किसी के बच्चे बिछड़ गए।

चहुँओर बहें रक्त की नदियाँ,

अनाथों के भाग्य बिगड़ गए।


भूखे नंगों की लगी कतारें,

सब दाने-दाने को तरस रहे।

ना घर है ना कोई ठिकाना,

अब सिर पर ओले बरस रहे।


बन्द करो ये तानाशाही अब,

युद्धों की परम्परा ये बन्द करो।

छोड़ो राह बर्बादी की सब,

परमाणु बम बनाना बन्द करो।


युद्ध में हुए अनाथों का अब,

तुम सब मिलकर कल्याण करो।

करके प्रायश्चित हे मानव तू,

जग का भी कल्याण करो।


लगाओ गले से अनाथों को,

प्रेम की उन पर बरसात करो।

दे कर आसरा और रोजगार,

जीवन उनका आसान करो।


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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