मकर संक्रान्ति

मकर संक्रान्ति है आई,

खुशियाँ ढेरों है ये लाई।

तन मन शुद्ध करने का,

पर्व स्नान का है लाई।


गंगा यमुना के घाटों पर,

रौनक देखो है आई।

लगी कतारें लम्बी लम्बी,

साधू संतों की टोली आई।


दीन दुखी को गले लगा,

खुशी उनको बाँटों भाई।

खोल कर मुट्ठी जी भर,

दान पुण्य कर लो भाई।


तिल के लड्डू, रेवड़ियाँ,

और बाँटो खूब मिठाई।

सुख, शांति और अमन से,

दामन अपना भर ले भाई।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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