मकर संक्रान्ति

पोंगल, पीहु, उत्तरायण या, 

कहो तुम इसे लोहड़ी।

सर्द ऋतु में घोले यह, 

गुड़ की मिठास संक्रांति।। 


धनु राशि से सूर्य देव,

करते मकर राशि में प्रवेश। 

चारों ओर सरसों फूलें, 

प्रकृति ने पहना हरियाली वेश।। 


संक्राति का पर्व, भरें दिलों में उमंग, 

आसमान पर छाये रंग-बिरंगी पतंग। 

तिल के लड्डू, गज़क तुम खाओ, 

तिल गुड़ का दान करो संग-संग।।


प्रयागराज के संगम तट पर, 

लगता प्राचीन माघ मेला। 

स्नान-दान की परम्परा में, 

मोक्षदायी है यह संक्राति बेला।। 


रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी, 
जनपद-जौनपुर।

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