विश्व पंछी दिवस

पंछी रोएँ सिसक सिसक कर,

सुन लो विनय हमारी।

टूट रही है साँसों की डोरी,

बख्श दो जान हमारी।


हम नन्हें-नन्हें पंछी हैं नाजुक,

हमने क्या तेरा बिगाड़ा?

दी है सजा किस बात की हमको,

क्यों घरौंदा हमारा उजाड़ा?


कुदरत के अवतार हैं हम भी,

ज्यों तुम सब हो मेरे प्यारे।

क्या हमने लिया तुम्हारा बोलो?

फिर क्यों पीछे पड़े हमारे?


विलुप्त हो रही प्रजाति हमारी,

विलुप्त हुए कुदरत के नजारे।

चलता रहा ये सब कुछ यूँ ही,

ये जग भी ना बचेगा प्यारे।


मत करो प्रदूषित वातावरण,

मत करो ये अत्याचार।

पछताएगा तू एक दिन प्यारे,

उजड़ेगा तेरा भी घर द्वार।


मत काटो अब जंगल सारे,

ये देते सबको जीवन दान।

तुमको हम समझाएँ क्या?

तुम तो हो पढ़े लिखे इंसान।


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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