गुरु

गुरु है जीवन का दर्पण,

होते हैं ज्ञान के अतुल्य भंडार।

पाकर प्रेरणा गुरूजनों से हमसब,

करते हैं अपने सपने साकार।।


प्रथम गुरु जीवन की माता,

जीवन देकर जीना सिखलाती है।

पिता है गुरु का वह रूप जिनसे,

जीवन की हर बात समझ आती है।।


 अक्षर-अक्षर पढ़ाकर करते शिक्षित,

 विभिन्न पाठ्यक्रमों का ज्ञान कराते हैं।

 विद्यालयों में शिक्षा प्रदान कर गुरुजी,

 ज्ञान, सभ्यता और संस्कार सिखाते हैं।।


 देते आशीष हो उन्नति पथ पर अग्रसर,

 मान सम्मान यश गौरव प्राप्त करें।

 जीवन मे उत्कृष्ट अभिलाषाओ संग,

 अपना भावी जीवन व्यतीत करें।।


गुरु बिन नहीं होता है ज्ञान,

स्थान जग में गुरु का गोविंद समान।

खींचकर ज्ञान रूपी बूँदों से शिष्यों को,

 बना देते हैं जग में महान।।


रचयिता

अमित गोयल,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय निवाड़ा,

विकास क्षेत्र व जनपद-बागपत।

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