बाघ

शाही पशु है बाघ हमारा,

हैं इसके राजसी ठाठ।

अपनी सुरक्षा की खातिर,

ये जोह रहे हैं बाट।


शिकारी है अव्वल दर्जे का,

ना इसके टक्कर का कोई।

खाद्य श्रृंखला के शीर्ष विराजे,

ना इसका प्रतिद्वन्दी कोई।


उजड़ रही है दुनिया इनकी,

उजड़ रहे आवास।

नित घट रही है संख्या इनकी,

नित हो रहे हैं अत्याचार।


खाने को भोजन ना मिलता,

ना मिलता सुखी संसार।

अपनी तरह ही इनको भी है,

जीने का अधिकार।


कुदरत की ये रचना सुन्दर,

हैं कुदरत के ये भाग।

समझो इनकी लाचारी अब,

ना लगाओ जंगल में आग।


आओ करें संकल्प आज हम,

उठाएँ शपथ हम आज।

बाघों की सुरक्षा को लेंगे,

अब हम सब अपने हाथ।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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