बाज़ार

यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ,

मत पूछो कहाँ कहाँ।

हो रहे अत्याचार,

हाँ देखो जी सरकार.......


दुनिया में सब कुछ बिकता है,

और बिकता है इन्सान।

कैसा कलयुग ये आया है,

सोचे ये भगवान।

उजड़ रही ये दुनिया हरपल,

उजड़ रहे घर द्वार।

हाँ देखो जी सरकार,

यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ.......


नाजुक सी कलियों पर हो रहे,

निर्मम अत्याचार।

मसल रहे हैं उनको मिलकर,

वहशी सरे बाजार।

बहे आँखों से आँसू की धारा,

और दिल में दर्द हजार।

हाँ देखो जी सरकार,

यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ.......


कभी अपने कभी गैर के हाथों,

होते मासूम शिकार।

उनके कोमल से तन मन पर,

होते हैं अत्याचार।

गरीबी और बेबसी के आगे,

होते हैं लाचार।

हाँ देखो जी सरकार,

यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ.......


शर्म करो कुछ शैतानों तुम,

पाओगे सजा दुश्वार।

हो लालच स्वार्थ के मद में अंधे,

करो ना पाप हजार।

खिलने दो नन्हीं कलियों को,

उड़ने दो पंख पसार।

हाँ देखो जी सरकार,

यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ.......


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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