चिड़िया का आँगन छूट गया
अम्मा अब न चावल चुनती, न बड़ियों को धूप दिखाती।
बर्गर-पिज्जा माँगे मुन्ना, मुनिया भी न खीलें खाती।
चिड़िया का आँगन छूट गया, घर बाग से रिश्ता टूट गया।।
बेमतलब जल को बहा-बहा, धरती को खूब निचोड़ा है।
सब ताल-तलैया सूख गये, मुख नदियों ने भी मोड़ा है।
चिड़िया का नहाना छूट गया, घर-बाग से रिश्ता टूट गया।।
बिखरे कुनबे घर टूट गये, अपने अपनों से रूँठ गये।
आम नहीं अब नीम नहीं, हरे पेड़ कट ठूँठ भये।
चिड़िया का चहकना छूट गया, घर बाग से रिश्ता टूट गया।।
उड़ रही बास सड़ता कचरा,
चहुँ ओर प्रदूषण है पसरा।
काला यह धुआँ चिमनियों का,
सब नभ मंडल में जा पसरा।
चिड़िया का उड़ना छूट गया,
घर बाग से रिश्ता टूट गया।।
रचयिता
राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा,
जनपद-बरेली।
Comments
Post a Comment