52/2025, बाल कहानी- 22 मार्च
बाल कहानी - सहानुभूति की समझ
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मोनू और राजू एक ही कक्षा में साथ-साथ पढ़ते थे। पोलियो के कारण बचपन में ही मोनू की एक टाँग खराब हो गई थी, जिसके कारण उसे चलने में बैसाखी का सहारा लेना पड़ता था। राजू जब भी मोनू को देखता तो उसे चिढ़ाने के लिए उसकी तरह लँगड़ा कर चलने लगता था। मोनू नजरें झुकाकर कक्षा में चला जाता और उदास हो जाता था। शिक्षक के पूछने पर भी वह राजू की कभी शिकायत नहीं करता था और दूसरे बहाने बता देता था।
एक बार मोनू अपनी माँ के साथ बाजार जा रहा था, तभी रास्ते में राजू मिल गया। फिर क्या? राजू उसकी मम्मी की नजर बचाकर उसे चिढ़ाने लगा। तभी मोनू की मम्मी ने राजू को चिढ़ाते हुए देख लिया। उसने राजू को समझाया और कहा, "बेटा! मोनू जैसी परेशानी किसी को भी हो सकती है, अतः आपको चिढ़ाने की जगह उसकी मदद करनी चाहिए ताकि वह हीनभावना से ग्रस्त न हो।"
मगर उनके समझाने का राजू पर कोई असर नहीं हुआ। उसने मोनू को चिढाना नहीं छोड़ा।
कुछ दिनों बाद स्कूल से एक पहाड़ी स्थान पर पिकनिक के कार्यक्रम पर बच्चे गये, जिनमें राजू और मोनू भी थे। सभी बच्चे उत्साहित होकर खेलने लगे। राजू यहाँ भी मोनू को चिढ़ाने के लिए पहाड़ी के ढलान पर लँगड़ाकर चला और फिसल गया। उसके एक पैर में काफी चोट आई और प्लास्टर चढ़ाया गया। राजू एक महीने तक बिल्कुल नहीं चल पाया। प्लास्टर कटने पर वह लाठी के सहारे लँगड़ाकर चल पा रहा था। अब दूसरे बच्चे उसे चिढ़ाते और कहते, "ये भी मोनू की तरह लँगड़ा हो गया।" ये सुनकर राजू तिलमिला उठता, परन्तु अब उसे अपनी गलती का भी अहसास होने लगा था कि मेरे चिढ़ाने पर मोनू को भी इसी तरह बुरा लगता होगा।
एक दिन मोनू उसे देखने आया तो राजू ने मोनू को गले लगाया और अपनी गलतियों के लिए उससे माफी माँगी।
संस्कार सन्देश-
परेशानी में किसी का मजाक उड़ाने के बजाय हमें सहानुभूति रखते हुए उसकी मदद करनी चाहिए।
कहानीकार-
एम० एस० मधुवन (स०अ०)
प्रा० वि०- सुल्तानपुर पलनापुर
विकासखण्ड- कायमगंज
जनपद- फर्रुखाबाद
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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