महिला सशक्तिकरण विशेषांक - 314
*👩👩👧👧महिला सशक्तीकरण विशेषांक- 314*
*मिशन शिक्षण संवाद परिवार की बहनों की संघर्ष और सफ़लता की कहानी*
(दिनाँक- 10.03.2025)
नाम- डॉ० सुनीता यादव
पद - सहायक अध्यापक
विद्यालय- पू० मा० वि० (बालक) खरदूली
वि०ख० - सैफई
जनपद - इटावा
*सफलता एवं संघर्ष की कहानी :-*👇
★प्रथम नियुक्ति/सामाजिक सेवा की शुरुआत - 25/11/2002
★वर्तमान नियुक्ति/वर्तमान कार्यक्षेत्र- पू० मा० विद्यालय (बालक) खरदूली, सैफई
★प्रारम्भिक परिचय-
डॉ सुनीता यादव (गौरैया संरक्षिका)
हाई स्कूल,इंटरमीडिएट- जैन इंटर कॉलेज करहल, मैनपुरी स्नातक- जीव विज्ञान
के के डिग्री कॉलेज,इटावा
परास्नातक - समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र
पी एच डी - समाजशास्त्र
मैं जनपद मैनपुरी की निवासी हूं। मेरे पिता स्वर्गीय राम नारायण यादव (भूतपूर्व ब्लॉक प्रमुख- करहल) एक बड़े बिजनेसमैन थे। राजनीति में भी उनका अच्छा कद था। मेरी माता जी स्वर्गीय धूप श्री बहुत ही सहज स्वभाव वाली गृहणी थी। हम चार भाई, चार बहन थे। हम सभी संयुक्त परिवार में पाले- बड़े। हमारे बाबा एक नामी ग्रामी सरपंच थे और हमारी दादी एक बहुत बड़ी प्रकृति प्रेमी थी। उन्हें पौधे लगाने का बहुत शौक था। वह एक साथ तीन आम के पेड़ लगाया करती थी जो अलग-अलग प्रजाति के होते थे। उन्होंने खेतों पर बहुत सारे आम की पेड़ लगाए थे और बम्बे (छोटी नहर) के किनारे -किनारे आम के पेड़ लगाए थे। वह आज भी फल दे रहे हैं। मेरा बचपन उसर में बने राइस मिल पर गुजारा क्योंकि मैं अपने भाई बहनों में छोटी थी। मैं अपने माता-पिता के साथ रहती थी।वहां ऐसी स्थिति थी कि शाम 6:00 के बाद वहां से लोग गुजरने से कतराते थे इसका कारण था कि वहां चोर डकैतों का निवास हुआ करता था। इसी वजह से हमारे पिताजी ने वहां राइस मिल लगाया और कहा मैं इस जंगल को मंगल करूंगा। वहां की उसर मिट्टी होने के कारण वह घास का तिनका भी नहीं होता था। दूर तलक सफेद चांदी जैसी रेव दिखाई पड़ता था। दूर-दूर से (कानपुर वगैरा ) ट्रक कपड़े धोने के लिए रेव लेने हमारे राइस मिल के आसपास से आते थे। मेरे पिताजी ने संकल्प लिया था कि मैं इस जगह को बहुत सुंदर बनाऊंगा। सबसे पहले उन्होंने 20- 20 फुट के गहरे गहरे गड्ढे खुदवाये और वहां उपजाऊ मिट्टी बाहर से मंगवाकर उनमें डलवाईं। उन्होंने उसमें पेड़ लगवाए। राइस मिल से निकलने वाली राख को वह एक ऊंचे चट्टान बनवाते थे, जिससे आने वाली हवा से वह राख ऊसर में फैले और उपजाऊ मिट्टी बन जाए। उनकी दूर दृष्टि से ऐसा हुआ कि आज वहां उसर नाम की कोई चीज नहीं है। राइस मिल की नींव सन 1975 में रखी गई थी। प्रकृति से प्रेम करना मेरे खून में था। मुझे बचपन से ही प्रकृति बहुत प्रेम था। मैं, पेड़- पौधों, पक्षियों से बहुत प्रेम करती थी। पक्षियों को निहारना मुझे बहुत अच्छा लगता था।
बेसिक शिक्षा विभाग में प्रथम नियुक्ति मेरी सन 2002 में मेरे पैतृक गांव अंडनी में हुई। उस विद्यालय में सभी वहीं शिक्षक थे जिन्होंने मुझे प्राथमिक शिक्षा दी थी। यह मेरे लिए गर्व की बात थी। विद्यालय प्रांगण में बड़े-बड़े वृक्ष थे। उन पर ढेर सारे पक्षी कलरव करते थे। मैं अक्सर उन पक्षियों को देखकर उनके बारे में जानना चाहती थी। इससे हमारे गुरुजन बहुत खुश होते थे।
सन 2013 में अपना स्थानांतरण जनपद इटावा में करा लिया। तभी से जनपद इटावा में पदस्थ हूं। मैंने अपना घर भी गंगा विहार कॉलोनी ,इटावा में बनाया है जो गौरैया हाउस के नाम से प्रसिद्ध है।
★विद्यालय/जीवन की समस्यायें एवं समाधान- सन 2016 में मुझे ज्ञात हुआ की गौरैया पक्षी रेड लिस्ट में है। यह मेरे लिए बहुत चिंता का विषय था। मैं बचपन में गौरैया के साथ खेला है। मेरे मन में ख्याल आया कि मेरे देखते ही देखते गिद्ध खत्म हो गए, अब गौरैया भी खत्म हो जाएगी और आने वाली पीढ़ियां इसे चित्रों में देखेंगे। मेरे लिए चुनौती का विषय था किसी कैसे बचाया जाए। मैंने काफी सर्च किया जिससे ज्ञात हुआ की मोबाइल टावरों की रेडिएशन से घातक कीटनाशकों के प्रयोग से एवं अन्य कई कारणों से गौरैया खत्म हो रही है। इस समय मुझे अपना ससुराल हमीरपुर गांव में जाना पड़ा वहां मैंने देखा गौरैया बहुत सारी हैं। मैंने देखा कि वहां मकान कच्चे बने हुए हैं जिन पर खपरैल पड़ी हुई है यदि कोई पक्का घर है तो उसमें सुराख खुले हुए हैं जिनमें गौरैयां अपना घोंसला बनाकर रह रहे हैं। अब मुझे आशा की एक कारण दिखाई दी। मेरी समझ में आ गया कि गौरैया खत्म होने का मुख्य कारण उसके घोंसला बनाने की जगह खत्म हो गई है। अब घर पक्के बनने लगे हैं और ऐसी कोई जगह नहीं होती जिसमें वह घोंसला बना सके।
समाधान - सर्वप्रथम मैंने अपने हाथों से कृत्रिम घोंसला बनाकर अपने घर में घर में लगाए और गौरैया संरक्षण किया। धीरे-धीरे यह घोंसले में लोगों को उपहार स्वरूप भेंट करने लगी। अभीतक मैं हजार से अधिक घोंसले बांट चुकी हूं और मेरी पूरी कोशिश रहती हूं कि प्रतिदिन एक घोंसला तैयार कर सकूं। मैं प्रतिवर्ष मार्च में गौरैया संरक्षण संगोष्ठी का आयोजन करती हूं। उसमें आये मेहमानों को एक सैकड़ा से अधिक घोसला वितरित करती हूं।
★स्वयं के जीवन के संघर्ष एवं सफलताएँ- जीवन एक यात्रा है उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं इनको में बहुत गंभीरता से नहीं लेती।
उपलब्धियां- पर्यावरण मित्र सम्मान, परिंदा प्रणय सम्मान, विधायक द्वारा शिक्षक सम्मान, प्रतिभा अलंकरण सम्मान, राष्ट्रीय उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, उत्तर प्रदेश पारस रत्न सम्मान,
उत्कृष्ट लेखन सम्मान, आदि।
★स्वयं की उपलब्धि - मैं अपने जीवन में गौरैया संरक्षण को मुख्य स्थान देती हूं। आज हमारे जनपद में गौरैया झुंड के रूप में दिखाई देती है जिसके कभी दर्शन दुर्लभ हो गए थे।
★मिशन शिक्षण संवाद के लिये संदेश - जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए एक जुनून चाहिए । वरना परिस्थितियों तो हमेशा ही विपरीत होती हैं।।
_✏संकलन_
ज्योति कुमारी
*📝टीम मिशन शिक्षण संवाद।*
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