50/2025, बाल कहानी- 20 मार्च


बाल कहानी - बढ़ई के बच्चे
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किसी गाँव में एक बढ़ई रहता था। बढ़ई की पत्नी और दो बच्चे बडे प्रेम से घर में रहते और सारा काम करते थे। बढ़ई के दोनों बच्चे दिन-भर स्कूल में पढ़ते और अपने तथा आस-पास के गाँवों में बच्चों के खिलौनों और जनानी सजावट की चीजें बेचते थे। इसके साथ-साथ वे रसोईघर की चीजों को भी बेचते थे। एक तरफ पढ़ाई और दूसरी तरफ व्यापार, इस प्रकार दोनों भाई व्यापार करके अपने पिता को खुश रखते और आर्थिक तंगी को उबारने में लगे रहते।
धीरे-धीरे वे दोनों भाई अरुण और रघुनाथ बङे होते गये। उन्होंने अब बी०ए० पास कर ली थी। उन्होंने घर पर भी माँ और दादी के लिए एक दुकान खुलवा दी थी। उनकी बहन रोशनी स्कूल से आने के बाद घर की दुकान सँभालती थी। इससे पहले सुबह से दादी और माँ दुकान चलाती।
समय बदला। दो-चार साल गुजरे! अब बढ़ई के दोनों पुत्र धनवान हो चुके थे। बढ़ई अपना लकड़ी के सामान बनाने और चारपाई भरने का कार्य बराबर करता रहा। गाँववालों के कार्यों से ही उसे फुरसत नहीं मिलती थी।
दो-चार साल और गुजरे तो दोनों बच्चों ने अपना कच्चा मकान बनाने की सोची। प्रधान जी ने पहल करके आवास दिलवा दिया। इस प्रकार सरकारी मदद और स्वयं के जमा रुपयों से मकान बनकर तैयार हो गया।
तब-तक बहन रोशनी भी बी०ए० कर चुकी थी। देखने में सुन्दर और सुशील तथा होनहार होने के कारण उसकी शादी अच्छे घराने में हो गयी। 
आज सारे गाँव वाले उनकी प्रशंसा करते हैं। क्यों ना करें, ऐसे नेक और ईमानदार तथा सुशील, उदार और मधुर वचन बोलने वालों की भला कौन प्रशंसा नहीं करता? दादा-दादी और माँ मुहल्लेवालों से दिन-भर अपने बच्चों की प्रशंसा करके थकती नहीं थी।

संस्कार सन्देश-
अगर हमारे मन में लगन, रुचि और दृढ़ता हो तो हम विपरीत परिस्थितयों को भी अनुकूल बना सकते है।

कहानीकार-
#जुगल_किशोर_त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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