शहीद भगत सिंह
प्यार के रंग हजार सही पर देशप्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं
जिस पर छाए केसरिया का खुमार उसके लिए इससे बढ़कर कोई रंग नहीं।
28 सितंबर 1907 का, ये दिन महान बहुत है।
क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, का यह जन्मदिन है।
बचपन में ही ये क्रांतिवीर, बंदूकें खेत में बोता था।
शहीदों की मिट्टी को, सिरहाने रखकर सोता था।
देशभक्ति की प्रचंड लहरें, इनकी रग-रग में बहती थी।
गुलामी की बेड़ियों से, इनको फाँसी बेहतर लगती थी।
अमृतसर का जलियांवाला, कभी नहीं वह भूले।
राष्ट्रप्रेम की ऐसी हिलोरें जो आसमान को भी छू लें
बात छिड़ी जब शादी की तो भगत आँसुओं से रोए
बोले दुल्हन मौत बनेगी या फिर आजादी हो ले।
हरगिज ब्याह नहीं करूँगा, मैं फाँसी का फंदा चूमूँगा
बेड़ियों में भारत माता तो मैं सेहरा कैसे पहनूँगा?
जिस दिन आएगी आजादी, शहनाई उस दिन बाजेगी।
स्वतंत्र देश की जनता, मेरी शादी के सोहर गाएगी।
स्वतंत्र भारत एकमात्र उद्देश्य, नौजवान सभा का गठन किया।
राष्ट्रप्रेम की खातिर इसने, हर कष्ट सहर्ष स्वीकार किया।
गणेश शंकर और बटुकेश्वर से, साथी इनको सहज मिले।
इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे से, दुश्मनों के थे दिल हिले।
सांडर्स को मारी गोली, अंग्रेजी आँखों में खटक गए।
लाहौर में चलती थी सुनवाई, जेल में भगत थे बिफर गए।
कैदी भी इंसान हैं, उनको दोयम दर्जा न सह पाउंगा।
करी भूख हड़ताल और बोले, कैदियों के हक दिलवाउंगा।
अंग्रेज थे बेहद डरे हुए और भगत का सिक्का चलता था।
कैदियों का हक मिला, हर कोई सलाम इन्हें करता था।
बारह महीनों में ही, अलबेला अक्टूबर आता है।
7 अक्टूबर 1930 का दिन, भुलाए न भुलाया जाता है
23 मार्च 1931 को वो, अलबेला दिन भी आया था।
जिस दिन इन तीनों वीरों ने, फंदे को गले लगाया था।
सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह, तीनों को फाँसी दे दी गई।
शहीद हुए तीनों सपूत और क्रांति की चिंगारी भड़क गई।
सहर्ष भेंट हुए थे ये तीनों, देशप्रेम की वेदी पर।
अमर रहें ये सपूत हमेशा, जो चढ़े शूली पर हँस-हँसकर।
सो गए अमर शहीद महान, यूँ राष्ट्रप्रेम बलिवेदी पर।
दुनिया करती शत् शत् नमन, इनको इनकी पुण्यतिथि पर।।
रचयिता
पूनम सारस्वत,
सहायक अध्यापक,
एकीकृत विद्यालय रुपानगला,
विकास खण्ड-खैर,
जनपद-अलीगढ़।
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