गौरैया
चिहुँक-चिहुँक कर फुदक फुदक कर घर आँगन महकाती थी
प्यारी चिड़िया गौरैया जब दाना चुगने आती थी
घर आँगन दालान सभी पर हक रखती थी गौरैया
घर के बच्चों संग हिल मिल रहती थी वो गौरैया
खत्म हुए दालान शहर में पानी का भी ठौर नहीं
होती थी वो मेहमान हमारी क्यों रहा अब वह दौर नहीं
चिड़ी चिड़ा की सुनीं कहानी बचपन की वह साथी थी
तालाब में नहाकर चिड़िया घर में दाना चुगने आती थी
एक दाने की खातिर ही वह सबसे लड़ भिड़ जाती थी
नहीं रहीं अब वो कहानियाँ नहीं रही अब नानी भी
विलुप्त न हो जाए गौरैया रह जाए बस कहानी ही
हे मानस के पुत्र सुनो तुम, प्रकृति की कड़ी है गौरैया
इसे बचाना कर्तव्य तुम्हारा, प्रकृति मित्र हैं गौरैया
दालान नहीं बन सकते हैं तो छत पर आश्रय दे दो तुम
रखो आज ही नींव इसकी गौरैया को बचा लो तुम
रचयिता
पूनम सारस्वत,
सहायक अध्यापक,
एकीकृत विद्यालय रुपानगला,
विकास खण्ड-खैर,
जनपद-अलीगढ़।
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