जो मेरे हिस्से में आया है
नंगे पैर छालों को छिपाता
कुछ हँसता कुछ मुस्कराता
वह विद्यालय आया है
और शनिवार हाट बाज़ार में
जूतों का ठेला लगाया है
ये मज़बूरी का किस्सा है, ये वो हिस्सा है
जो मेरे हिस्से में आया है .........................
है भूख से बेहाल
मेरे हिस्से का नौनिहाल
कभी मिला निवाला
तो कभी भूखा ही सोया है
ये भूख का किस्सा है, ये वो हिस्सा है
जो मेरे हिस्से में आया है...........................
गर्मी में देख के पसीने से
तर-बतर मुझे
वो दौड़कर कॉपी से
पंखा झलने लगता है
गर्मी तो उसे भी सताती होगी
पर उसे तो आदत है
ऐसा वो कहता है
ये मज़बूरी का किस्सा है, ये वो हिस्सा है
जो मेरे हिस्से में आया है ...........................
हरा नीला काला पीला
हो लाल केसरिया या सफ़ेद
हर तरह के रंगों की पहचान कराती हूँ मैं
पता है मुझे और उसे भी
सफेद है पूरा कैनवास
और ये रंग भी बहुत महँगे हैं
ये जीवन का किस्सा है, ये वो हिस्सा है
जो मेरे हिस्से में आया है..........................
कुछ सिमटा सकुचाया सा
वो बचपन मेरे पास आया है
एक पेन कुछ फूल एक कार्ड
है कार्ड में समाहित उसके कुछ भाव
हैप्पी टीचर्स डे कहते हुए
सर्वस्व मुझे थमाया है
ये सम्मान का किस्सा है, ये वो हिस्सा है.
जो मेरे हिस्से में आया है.........................
अब, पंखों को परवाज़ करना है
होठों पे मुस्कान भरना है
खाली है जो कैनवास
उसे रंग-बिरंगा करना है
ये हिस्सा मुझे अज़ीज है
मेरे दिल के बहुत क़रीब है
कुछ कोशिशें की हैं मैंने
बहुत कुछ अभी करना है
बहुत कुछ अभी करना है.......................
रचयिता
अंशु सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय भिक्कनपुर,
विकास खण्ड-रजापुर,
जनपद-गाजियाबाद।
Comments
Post a Comment