इस बार हर बार

इस बार कुछ ऐसा किया जाए...

किसी दुखिया के घर में खुशियाँ लायी जाएँ,

दिन-रात एक किये अपनी खुशी की खातिर,

इस बार किसी उदास से चेहरे को हँसाया जाए...


ऊँची महँगी दुकानों से तो बहुत खरीदा हर बार 

इस बार किसी गरीब की दुकान रोशन की जाए...


रंग-बिरंगी झालरों से खूब सजाया घर आँगन,

इस बार मिट्टी के दियों से अपना घरौंदा सजाया जाए


दान-दक्षिणा, रुपया-पैसा खूब चढ़ाया मंदिरों में,

देना ही है कुछ तो किसी जरूरतमंद को दिया जाए


खूब खरीदे कपड़े मन के, जी भर के सब पहने,

अनगिनत कपड़ों के ढेरों से कुछ निर्धनों को पहनाया जाए...


व्रत रखे जागरण किये मंदिर-मंदिर घूमे,

मंदिर की माँ खुश करने के किये सभी उपाय,

देवी पूजन करके, "घर की लक्ष्मी" पूजी जाए..


गली-मोहल्ला घर-घर ढूँढा करने कन्या पूजन,

कपड़े-बर्तन, हलवा-पूड़ी किये उसको सब अर्पण

इस बार किसी निर्धन कन्या का जीवन सँवारा जाए.


खूब जलाये रावण तुमने, लाखों खर्चे रुपये,

मन मे बैठे रावणों की आहुति चढ़ाई जाए...


आओ सब मिलकर प्रण करें सब बोले बस ये बात,

इस बार नहीं, हर बार यही दोहराएँगे एक साथ।।


रचयिता
खुशबू गुप्ता,
सहायक अध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय भदोई,
विकास खण्ड-सरोजनी नगर,
जनपद-लखनऊ।


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