नवरात्रि की बहुत बधाई
नवरात्रि की बहुत बधाई,
माता रानी फिर से आईं।
एक बात ना मन को भायी,
वृद्धाश्रम में किसकी माई.......?
माँ के आने की तैयारी,
घर-बाहर की खूब सफाई।
पूजा की पूरी तैयारी,
अपनी माँ बाहर भिजवाई.......?
घर की माँएँ बोझ लग गयीं,
बदली सबकी सोच लग गयी।
रिश्तों में इतनी रुसवाई,
अपनी माँ क्यों हुई पराई......?
खून-पसीने से जिसने सींचा,
तिल-तिल पिस कर हमें सहेजा।
उसके लिए न प्रीत बहाई,
उसको क्यों यह सजा दिलाई....?
जगराते भी रोज हो रहे,
मात-पिता तो बोझ हो गए।
बच्चों को आधुनिकता भायी,
वृद्धाश्रम में किसकी माई.....?
प्रसाद, मिठाई खूब सब बाँटो,
मित्रवर भी ढूंढ कर छांटो।
एक बार भी लाज ना आयी?
माँ के आँचल से रुसवाई.....?
रोज-रोज निमंत्रण आएँ,
ढ़ोल-मंजीरे खूब बजाए।
माँ ने पानी की घूँट न पाई,
वजह से इसकी रोज लड़ाई......?
रोज माँ को बुलाने वालों,
सुख की गुहार लगाने वालों।
अपनी माँ की याद न आयी,
पर माँ तो कभी भी रास न आयी .....?
मात-पिता की सेवा कर लो,
खुशियों से खुद झोली भर लो।
ढोंग, आडंबर काम ना आयी,
वृद्धाश्रम में किसकी माई......?
रचयिता
बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।
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