मेरी ये मजबूरी है
तर्ज= बाबुल की दुआएँ लेती जा .......
माँ मुझसे तू नाराज ना हो,
तुमसे आज ये दूरी है।।
मन्दिर नहीं मैं आ सकती,
मेरी ये मजबूरी है।।
जल का लोटा है हाथ में,
आकर नहीं चढ़ा सकती।
फूल हैं बगिया में बहुतेरे,
माला नहीं बना सकती।
संकट की इस बेला में,
ये दूरी बहुत जरूरी है।
मन्दिर नहीं मैं आ सकती,
मेरी ये मजबूरी है।।
दुख के बादल जब भी छाये,
माँ तुमने ही उद्धार किया।
राक्षसों को मार गिराया,
भक्तों पर उपकार किया।
महामारी के इस राक्षस का,
अब संहार जरूरी है।
मन्दिर नहीं मैं आ सकती
मेरी ये मजबूरी है।।
परीक्षा की इस घड़ी में,
माँ तुम को आगे आना होगा।
घर में मन्दिर बना लिया है,
आकर दरश दिखाना होगा।
माँ जब भी तुमसे कुछ भी माँगा,
हुई कामना पूरी है।।
मन्दिर नहीं मैं आ सकती,
मेरी ये मजबूरी है।
रचयिता
हेमलता गुप्ता,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुकंदपुर,
विकास खण्ड-लोधा,
जनपद-अलीगढ़।
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