प्रकृतिरूपी कन्या

आज फिर हर घर सजना है,

देवीरूपी कन्या का हर घर अंगना है।।


घर- घर मंदिर सजना है,

धूप -दीप  नैवेद्य चढ़ना है।।


सरस्वती, लक्ष्मी, काली हर एक कन्या है,

यही भाव हम सबको मन में भरना है।।


ऊँच-नीच का भेद मिटाना है,

प्रेम भाव को हमें अपनाना है।।


चाहे कितना ही निष्ठुर हो ये जमाना है,

पर इस प्रकृति को हमें सजाना है।।


सताई जा रही कन्याओं का जिमाना है,

खोया सम्मान कन्याओं का दिलाना है।।


हरी-भरी प्रकृति ही सुंदर कन्या है,

इस सुंदर कन्या को हमें सजाना है।।


ले यही संकल्प हर घर अपना है,

आज फिर हर घर सजना है।।


रचयिता
साधना,
प्रधानाध्यापक
कंपोजिट स्कूल ढोढ़ियाही,
विकास खण्ड-तेलियानी,
जनपद-फतेहपुर।

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