अशफ़ाक

था दौर गुलामी का ऐसा मगर यूँ,

लौ क्रांति की हिन्द पर फूट रही।

असहयोग भी जोरों पर था जहाँ,

आग आजादी की धधकती रही।


जोशीली, सजीली आवाज का मालिक,

नौजवां क्रांतिकारी वो आ रहा।

परिचय का मोहताज नहीं था,

शेरे-हिन्द अशफ़ाक था गा रहा।


कस ली है कमर अब तो कुछ

करके ही दिखा देंगे, आजाद ही

हो लेंगे या सिर ही कटा देंगे

यूँ कह के वतन पर फना हो लेंगे।


ये उर्दू शायर बिस्मिल से मिला तो,

कलम की स्याही लाल होने लगी।

छोड़ रस्ता असहयोग का दोनों ने,

मौत अब तो जुनून यूँ जगाने लगी।


देखनी मिसाल हिन्दू-मुस्लिम एकता की,

तोड़ न सका अशफ़ाक बिस्मिल को कोई।

काकोरी कांड के आजादी के सिरफिरे,

देश के लिये फाँसी हँस के गले लगा दी।


धन्य हिन्द की धरती में जन्मे इन,

रणबांकुरों को शत नमन कर रही।

आज भी आजाद हवाएँ देश की,

इनके बलिदानों की गाथा गा रही।


रचयिता
जया चौधरी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय बलखिला मलारी,
विकास खण्ड-जोशीमठ,
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।



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