नारी जीवन
चाहें पथ में बिछे हों कण्टक
लाँघ उन्हें मैं जाती हूँ
पंक में विकसित कमल पुष्प -सी
मन्द -मन्द मुस्काती हूँ।
अलङ्कारों से अलंकृत हूँ
नवरस से अभिसिंचित हूँ
दुर्गा, चंडी, काली, गौरी
सृष्टि की निर्मात्री हूँ।
वैदिक ग्रन्थों की नारी भी
रथ की धुरी कहलाती थी
घोषा, अपाला, गार्गी, मैत्रेयी
शास्त्रार्थों में निपुणा थी।
अबला नही मैं सबला हूँ
करुणा, ममता की मूरत हूँ
साध्वी, गृहिणी, पत्नी, बेटी
देवों में सर्वोपरि हूँ।
देश की वीरांगनाओं ने
स्वातन्त्र्य समर में इतिहास रचा
अपने शौर्य पराक्रम से ही
प्राणों का बलिदान दिया
छल-दम्भ -पाखण्ड झूठ से
नैतिकता का ह्रास हुआ
इसीलिए अपने ही राष्ट्र में
मातृशक्ति का मान घटा।
कोई भी मानव, न बने रावण
मानव में मानवता ही रहे
अरज यही सम्पूर्ण राष्ट्र से
हर नारी महफ़ूज रहें।।
रचयिता
दीपा पाण्डेय,
प्रवक्ता संस्कृत,
राजकीय बालिका इंटर कॉलेज काकड़,
विकास खण्ड-बाराकोट,
जनपद-चम्पावत,
उत्तराखण्ड।
Amazing adorable lovely mam
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