मेरी कविता
डूब कर भागों में मेरे
शब्द का एहसास है,
ये मेरी कविता शिशिर में,
धूप का एहसास है।
जब कभी आशा का पंछी
गगन में उड़ने चला,
और मन उद्विग्न हो
द्रुत वेग से चलने चला,
रोककर उसकी गति को
राह बतलाने लाने लगी,
छोड़कर छल-दंभ तृष्णा
सत्य सिखलाने लगी,
पतझरी उजड़े चमन में
प्यार का मधुमास है।
यह मेरी कविता से शिशिर में
धूप का एहसास है।।
ताप दे संघर्ष लौ का
कनक सा उज्ज्वल किया,
इसने हर एक मोड़ पर
मुझको नया संबल दिया,
टहनियों पर पात है
हर फूल की जननी है तू,
और रिश्तों की डगर पर
प्यार की भगिनी है तू,
मेरे उर की कशमकश में
बाँधती विश्वास है।
यह मेरी कविता शिशिर
में धूप का एहसास है।।
मन मुड़ेरी पन की पंछी
अप्सरा सुर लोक की,
दामिनी सी दमक जाती
सहचरी आलोक की,
जेठ में शीतल पवन है
सावनी बौछार है,
इस प्रभंजित जिंदगी में
आत्म सुख का सार है,
कल्पना के देश की तू
क्षितिज है आकाश है।
यह मेरी कविता शिशिर में
धूप का एहसास है।।
नव शिशु की माँ की लोरी
ममता पूरित छाँव है,
तू ही परियों की कहानी
और मेरा गाँव है,
रात की तू चाँदनी है
प्रातः की पहली किरण,
राज की हमराज है तू
प्रगति का पहला चरण,
'यशो' के मन मंदिर की तुलसी
औषधि और श्वांस है।
डूब कर भावों में मेरे
शब्द का एहसास है।
यह मेरी कविता शिशिर में
धूप का एहसास है।।
रचयिता
यशोधरा यादव 'यशो'
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट विद्यालय सुरहरा,
विकास खण्ड-एत्मादपुर,
जनपद-आगरा।
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