56/2024, बाल कहानी- 30 मार्च


बाल कहानी- पेन्सिल 
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करन- "राजेश! तुम्हारे पास मेरी पेन्सिल है क्या?"
राजेश- "नहीं मित्र! मेरे पास तुम्हारी पेन्सिल नहीं है।..ये देखो, केवल मेरे पास मेरी ही पेन्सिल है, जो कि मैंने आज सुबह स्कूल आते समय खरीदी थी।"
करन- "कल चित्रकला बनाते समय मेरे पास पेन्सिल थी परन्तु आज नहीं है, इसलिए पूछा! क्योंकि कल तुम मेरे पास बैठे थे और गलती से कहीं तुम्हारे पास चली तो नहीं गयी। तुम एक बार अपना बैग चेक कर लो।"
राजेश- "लगता है करन.. तुम्हारा दिमाग खराब है। तुम एक पेन्सिल के लिए मेरे बैग की तलाशी लोगे?
जब मैंने कह दिया कि नहीं है मेरे पास.. तो नहीं है। आये दिन मैं तुम्हे अपने सामान देता आया हूँ ये सोच कर, कि तुम गरीब हो! खरीद नहीं सकते और आज तुम मुझ पर ही इल्जाम लगा रहे हो।
मुझे अफसोस हो रहा है कि मैंने तुम्हें अपना दोस्त माना! तुम गरीब तो हो ही, गलीज भी हो, आज से हमारी तुम्हारी दोस्ती खत्म।"
करन- "मैंने तुम पर कोई आरोप नहीं लगाया। बस! हक जताया कि गलती से बैग में चली गयी होगी। एक बार देख लो। मुझे बहुत तकलीफ हुई राजेश! तुम मेरी मदद दोस्ती के नाते नहीं, मेरी गरीबी की वजह से कर रहे थे।"
इतना कह कर करन रोने लगा। कुछ देर बाद बच्चों की स्कूल से छुट्टी हो गयी। सारे बच्चे अपने-अपने घर चले गये। करन और राजेश भी अपने-अपने घर चले गये।
राजेश ने घर पहुँचते ही देखा कि पिता जी एक नया बैग लाये हैं।
राजेश बहुत खुश हो गया। जल्दी से पुराने बैग से अपना सारा सामान नये बैग में रखने लगा, तभी अचानक उसकी नजर पेन्सिल पर पड़ी।
राजेश- "ओह! ये पेन्सिल तो करन की है। मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गयी! मुझे करन के पास जाकर माफ़ी माँगनी चाहिए। मैंने उस पर विश्वास न करके उसका दिल दुखाया है।"
राजेश दौड़ कर गया। उसने करन से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी। करन ने राजेश के आँसू पोंछे और माफ़ करते हुए गले से लगा लिया।

संस्कार सन्देश-
सच जाने बिना हमें कभी किसी से बहस नहीं करनी चाहिए।

लेखिका-
शमा परवीन (अनुदेशक)
उ० प्रा० वि० टिकोरा मोड़
तजवापुर, बहराइच (उ०प्र०)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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