53/2024, बाल कहानी- 26 मार्च
बाल कहानी- मुरझायी फसलें
एक गांँव में दो किसान मैकू और श्यामू रहते थे। वे दोनों ही बहुत बहुत मेहनती थे। अपनी मेहनत के बल पर दोनों के खेतों में गाँव में सबसे अधिक फसल होती थी, लेकिन कुछ समय से गाँव के ही कुछ लोगों की बुरी संगत के कारण मैकू अपने खेतों में ध्यान कम दे रहा था। वह बीज और खाद-पानी समय पर नहीं देता था। उसकी लापरवाही उसकी फसलों को प्रभावित करने लगी थी। उसके खेत सूखे हुए थे और फसलों का उत्पादन लगातार कम होता जाता था। मैकू अपने नये साथियों के साथ अक्सर गाँव में ताश खेलता रहता था। मैकू की पत्नी मैकू की इस आदत से परेशान रहती थी। वह समझाती तो मैकू उससे झूठ बोल दिया करता कि खेतों से अभी आया हूँ।
एक दिन मैकू से श्यामू ने कहा, "मैकू भाई! आपको अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। खेती में लापरवाही नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारी जीविका का एकमात्र साधन यही है। समय पर हर काम नहीं करोगे तो खेत सूने हो जायेंगे।"
मैकू ने उसे अपने खेत दिखाये और फिर उसे खेतों की ओर ले गया। अपने मुरझाये खेतों को देखकर वह बहुत शर्मिन्दा हुआ। तब उसे यह अहसास हुआ कि वास्तव में उसने लापरवाही की है। और अपनी ग़लती सुधारने के लिए मन में तय कर लिया।
धीरे-धीरे मैकू की खेती की रंगत बदल गयी। मेहनत और ध्यान देने से उसकी फसल भी अच्छी होने लगी। मुरझायी फसलें फिर से खुशी से झूमने लगीं। मैकू को अच्छी पैदावार प्राप्त हुई, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
संस्कार सन्देश-
यदि हमारे मित्र या सम्बन्धी अपना रास्ता भटक जाएँ, तो सही सलाह देकर उनको राह दिखानी चाहिए।
लेखिका-
शिखा वर्मा (इं०प्र०अ०)
उ० प्रा० वि० स्योढ़ा
बिसवाँ (सीतापुर)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
फतेहपुर
✏️संकलन
टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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