52/2024, बाल कहानी- 23 मार्च
बाल कहानी- फर्ज और कर्तव्य-निष्ठा
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एक गाँव में सोनू और मोनू नाम के दो भाई रहते थे। दोनों ही किसान थे। दोनों भाइयों का प्यार देखकर सभी उनकी तारीफ करते थे। उनके माता-पिता बुजुर्ग थे। घर आकर दोनों उनकी सेवा करते और अपनी छोटी बहन को, जो दसवीं कक्षा में पढ़ती थी, उसको पढ़ाने के लिए अपने पास बिठा लेते। रात का खाना सभी एक साथ खाते और सो जाते।
एक दिन अधिक बारिश हो रही थी। छप्पर पुराना था। उसमें से पानी आया तो सब सामान भींग गया। उन्हें बड़ी परेशानी उठानी पड़ी। दूसरे दिन जब बारिश बन्द हुई तो बहिन ने नया छप्पर बनाने की बात कही और आनन्द ने छप्पर का सारा सामान इकट्ठाकर छप्पर को बना दिया। सभी उसमें रहने लगे, लेकिन बारिश में भीगने के कारण छोटी बहन की तबीयत खराब हो गयी। जब डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने बहुत महँगी दवाई लिख दी। अब दवाई के लिए पैसे नहीं थे। सोनू ने कहा-, "भाई! मेरी यह पुरानी साइकिल है। इसको बेचकर दवाई ले आओ। किसी भी तरीका से हमें अपनी बहन को ठीक करना है।" मोनू ने तब 'हाँ' कर दी और दवाई लेकर आ गया।
अगले दिन बोर्ड परीक्षा शुरू हो गयी। बहन का परीक्षा सेंटर काफी दूर पड़ा था। अब सोनू सोच में पड़ गया कि इतनी दूर पैदल कैसे जायें? साइकिल तो है नहीं, पुरानी बोगी घर में खड़ी हुई थी। उसे चलाने के लिए बेल या भैंसा नहीं था। दोनों भाइयों ने जल्दी से अपनी बहन को तैयार किया और गाड़ी को बाहर निकाला। बहन को बिठाकर खुद दोनों बोगी खींचते हुए केंद्र पर ले गये ताकि पेपर न छूट जाये। यह देखकर कुछ लोग तारीफ भी कर रहे थे और कुछ हँस भी रहे थे, लेकिन वे दोनों बहन के प्रति अपना प्यार, अपना फर्ज और कर्तव्य निभा रहे थे।
शाम को जब घर वापस आये तो घर पर मुखियाजी बैठे हुए थे। उन्होंने जब यह नजारा देखा तो उनकी आँखें भर आयीं। उन्होंने दोनों भाइयों को शाबाशी दी कि-, "आज आपने दिखा दिया कि फर्ज और कर्तव्य क्या होता है!" उन्होंने दोनों भाइयों को धन-राशि देकर सम्मानित किया और कहा कि-, "कुछ भी जरूरत हो, तो बेझिझक मुझसे माँग लीजिए। जब तक पेपर चल रहे हैं। मेरी बाइक ले जाओ।" मुखिया जी का इतना कहना भगवान की तरह वरदान साबित हुआ। आस-पड़ोस के व्यक्ति भी जो हँस रहे थे, वह भी मदद करने के लिए तैयार हो गये। माता-पिता अपने बेटों के इस निश्चल विशुद्ध प्रेम को देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने अपने तीनों बच्चों को गले लगा लिया।
संस्कार सन्देश-
हमें अपने परिवार में मिल-जुलकर रहते हुए छोटों के प्रति अपने फर्ज और कर्तव्य को निभाना चाहिए।
लेखिका-
पुष्पा शर्मा (शि०मि०)
पी० एस० राज़ीपुर, अकराबाद, अलीगढ़ (उ०प्र०)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
फतेहपुर
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक_प्रभात
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