54/2024, बाल कहानी- 27 मार्च
बाल कहानी- चिन्टू का गांँव
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गांँव में बहुत भीड़ जमा हुई थी। मैं अचानक शहर से गांँव बहुत दिनों बाद आया था। गर्मी की छुट्टियांँ थीं। नानी के घर घूमने गया था। आज अपने माता-पिता के साथ गांँव आया तो देखा कि गांँव में बहुत भीड़ जमा हुई है।
मैंने भीड़ को हटाते हुए जाकर देखा तो पता चला कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से लड़ाई कर रहा था। लोग वीडियो बना रहे थे। कोई उन दोनों को एक दूसरे से हटा नहीं रहा था, जबकि भीड़ इतनी ज्यादा थी कि अगर दोनों व्यक्तियों को अलग-अलग करके भीड़ हटा देती तो शायद लड़ाई रुक जाती।
इससे पहले मैं कुछ कहता या करता, पिताजी बोले-, "चिन्टू चलो! घर चलो। यह तो रोज का माजरा है। ये लोग सुधरने वाले नहीं है। आये दिन लड़ाई-झगड़ा करते रहते हैं। तुम घर चलो! कल तुम्हें स्कूल भी जाना है।"
मैंने पिताजी से कहा-, "पिताजी! आप इन दोनों को लड़ाई करने से रोकें"।
पिताजी ने मुझे डांँटते हुए कहा-, "तू घर चलता है कि लगाऊँ तुझे एक थप्पड़!"
चिन्टू ने पिताजी से निवेदन किया कि-, "एक बार कोशिश करके देखिए, शायद लड़ाई रुक जाये। आप ही तो कहते हैं कि अगर हमें भलाई करने का मौका मिले तो जरूर करना चाहिए। इन दोनों लोगों को लड़ाई से रोकना भी एक भलाई है।"
चिन्टू की बात सुनकर उसके पिताजी ने लड़ाई रोकने की। पहल की और लोगों से भी लड़ाई रुकवाने के लिए मदद मांँगी।
कुछ ही देर में भीड़ ने मिलकर लड़ाई कर रहे दोनों व्यक्तियों को अलग-अलग ले जाकर समझा दिया।
कुछ ही देर में दोनों व्यक्तियों का एक-दूसरे से समझौता हो गया।
चिन्टू को बहुत अच्छा लगा। उसने अपने पिताजी को धन्यवाद कहा और घर की ओर चल दिया।
संस्कार सन्देश-
आपस में झगड़ रहे लोगों में समझौता करा देना भलाई का काम है।
लेखिका-
शमा परवीन (अनुदेशक )
उ० प्रा० वि० टिकोरा मोड़, तजवापुर, बहराइच, (उ०प्र०)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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