वृक्ष
हरे-भरे ये वृक्ष हमारे,
इनसे ही छाया और पानी है;
इनको मत काटो तुम यारों,
ये सब मौसम विज्ञानी हैं।
धूप-छाँव बारिश को सहकर,
प्राण-वायु मानव को देते;
अपने फल से भूख मिटाकर,
सदा भूख ये हर लेते।
जीव-जन्तु का नीड़ बने ये,
तनिक न अभिमानी होते हैं;
जेठ दोपहरी में मानव भी,
इनके नीचे ही सोते हैं।
सूखे पत्ते सूखी टहनी,
चूल्हे की बन आग सुहानी;
भोजन को यह पका रही है,
बनकर भोजन की दीवानी।
पशु-पक्षी मानव हित का,
जीवन भी नित वृक्ष सवारें;
इन सब के कारण ही यारों,
पूज्य हुए ये वृक्ष हमारे।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
इनसे ही छाया और पानी है;
इनको मत काटो तुम यारों,
ये सब मौसम विज्ञानी हैं।
धूप-छाँव बारिश को सहकर,
प्राण-वायु मानव को देते;
अपने फल से भूख मिटाकर,
सदा भूख ये हर लेते।
जीव-जन्तु का नीड़ बने ये,
तनिक न अभिमानी होते हैं;
जेठ दोपहरी में मानव भी,
इनके नीचे ही सोते हैं।
सूखे पत्ते सूखी टहनी,
चूल्हे की बन आग सुहानी;
भोजन को यह पका रही है,
बनकर भोजन की दीवानी।
पशु-पक्षी मानव हित का,
जीवन भी नित वृक्ष सवारें;
इन सब के कारण ही यारों,
पूज्य हुए ये वृक्ष हमारे।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
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