कलम पकड़ने दो हाथों में
बेटियों को समर्पित
कलम पकड़ने दो हाथों में।
काम में न लगाओ माँ।
मुझे स्कूल में पढ़ने दो।
घरेलू जाल में न फँसाओ माँ।
न हाथ पीले करो शादी के बन्धन से।
इन्हें रंग जानें दो कलम की स्याही से माँ।
सम्भालूँगी दो-दो घर।
मुझे अपनें पैरों पे खडी हो जाने दो माँ।
किताबों का बोझ तो सम्भाल लूँगी ।
परिवार को कैसे सम्भालूँगी माँ।
मुझे अभी नहीं जोड़ने पारिवारिक रिश्ते।
अभी आई०ए०स०, पी०सी०एस बन जाने दो माँ।
स्कूल में नाम लिखवा दो ।
भाई-बहन खिलाने के बन्धन में न लगाओ माँ।
नन्ही सी परिन्दा हूँ, मैं उड़ना चाहती हूँ ।
मुझे जमाने को उडान दिखाने दो माँ।
शादी के जाल में न फँसाओ ।
खुद सोचो और सबको बताओ।
शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ जाने दो माँ।
मुझे पढा़ -लिखकर बड़ा हो जाने दो माँ।
मुझे मेरे अधिकार को पहचानने दो माँ।
रचयिता
हरीओम सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय पेरई,
विकास खण्ड-नेवादा,
जनपद-कौशाम्बी।
कलम पकड़ने दो हाथों में।
काम में न लगाओ माँ।
मुझे स्कूल में पढ़ने दो।
घरेलू जाल में न फँसाओ माँ।
न हाथ पीले करो शादी के बन्धन से।
इन्हें रंग जानें दो कलम की स्याही से माँ।
सम्भालूँगी दो-दो घर।
मुझे अपनें पैरों पे खडी हो जाने दो माँ।
किताबों का बोझ तो सम्भाल लूँगी ।
परिवार को कैसे सम्भालूँगी माँ।
मुझे अभी नहीं जोड़ने पारिवारिक रिश्ते।
अभी आई०ए०स०, पी०सी०एस बन जाने दो माँ।
स्कूल में नाम लिखवा दो ।
भाई-बहन खिलाने के बन्धन में न लगाओ माँ।
नन्ही सी परिन्दा हूँ, मैं उड़ना चाहती हूँ ।
मुझे जमाने को उडान दिखाने दो माँ।
शादी के जाल में न फँसाओ ।
खुद सोचो और सबको बताओ।
शिक्षा की मुख्यधारा से जुड़ जाने दो माँ।
मुझे पढा़ -लिखकर बड़ा हो जाने दो माँ।
मुझे मेरे अधिकार को पहचानने दो माँ।
रचयिता
हरीओम सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय पेरई,
विकास खण्ड-नेवादा,
जनपद-कौशाम्बी।
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