रक्षाबंधन

रक्षाबंधन की बेला आई रे,

घर आँगन में खुशियाँ छाईं रे।


सज धज बहनें पीहर में आईं,

मात पिता से मिलने को आईं।

देख भाई को फूली ना समाईं रे,

घर आँगन में खुशियाँ छाईं रे।

रक्षाबंधन...............


सखियाँ सारी मिलने को आईं,

सुख दुःख अपने बाँटने आईं।

जीने बचपन को फिर से आईं रे,

घर आँगन में खुशियाँ छाईं रे।

रक्षाबंधन.............


झूला झूलें सब बालाएँ,

मिलजुल कर मल्हारें गाएँ।

फिर खूबहिं पेंग बढ़ाईं रे,

घर आँगन में खुशियाँ छाईं रे।

रक्षाबंधन.............


राखी की अनुपम बेला आई,

सजने लगी भाई की कलाई।

प्यार भाई पर बहना लुटाई रे,

घर आँगन में खुशियाँ छाईं रे।

रक्षाबंधन.............


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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