सुभद्रा कुमारी चौहान

16 अगस्त 1904 को जन्मीं, 

ओजस्वी सुभद्रा कुमारी चौहान। 

साहित्य जगत में पायीं जो,

अविस्मृत कालजयी स्थान।।


उर में जोश रहा सदा से,

कलम सहेली इनकी थी।

काव्य प्रतिभा में आयी धार,

नींव पड़ी बचपन से थी।।


जीवन सागर भरा प्रेम से, 

काव्य में वीर रस छलके।

राष्ट्रीय चेतना की सजग प्रणेता,

शब्द-शब्द से राष्ट्रप्रेम झलके।।


त्याग सादगी की मूरत,

पहली महिला सत्याग्रही।

पति लक्ष्मण सिंह चौहान,

मार्गदर्शक माखनलाल चतुर्वेदी।।


वीरों का बसंत रचकर,

राष्ट्रीय चेतना जगा गयीं

झाँसी की रानी का अद्भुत,

दुर्गा रूप दिखा गयीं।।


राष्ट्रीय भावना ऐसी जागी,

वीर रस भाव बना प्रधान।

चली कलम सुभद्रा की,

ना रहा और किसी का भान।।


मुकुल एक काव्य संग्रह,

कहानी संग्रह बिखरे मोती।

पद्य से बढीं गद्य की ओर,

भावों में कमी नहीं होती।।


अनुभूतियाँ लिख जीवन की,

हर पहलू को छू लिया।।

काव्य का रुप निराला ऐसा,

साहित्य को अपने अमर किया।।


आग्नेय कविताएँ ऐसी,

ज्वालामयी रूप दिखाएँ।

नारी सशक्तिकरण के,

अद्भुत संयोग दर्शाएँ।।


फिर आया 15 फरवरी 1948,

बहती धारा जब रुक गयी।

छीना विद्वान कलमकार,

कलम सदा को थम गयी।।


श्रद्धा ओज करुणा में डूबी,

लेखनी को प्रणाम करें।

देशप्रेम के जज्बे से पूरित,

रचनाओं का ध्यान करें।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।

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