राखी का त्योहार

आ रहा है राखी का त्योहार,

माँ मैं राखी बना रही हूँ।

प्रेम और विश्वास  के,

मजबूत धागे लगा रही हूँ। 

भाई-बहन के इस प्यार को 

बेशकीमती बना रही हूँ।

ये रिश्ता जो अनमोल 

बँधी प्यार की डोर है।

इस राखी को मैं,

मोतियों से सजा रही हूँ।

आ रहा है राखी का त्योहार,

माँ मैं राखी बना रही हूँ।

भैया से उपहार में, 

जो भेंट मिलेगी मुझको

इठलाकर दिखाऊँगी मैं 

जाकर अपनी सखी को।

लेकर जाऊँगी वहाँ अपने भाई  को

मिलाने उनसे 

मजबूर हैं जो मजदूरी करने को

मेहनत करते-करते

जिन्हें त्योहार भी याद ना रहते

राखी भरे हाथों को

वो देखते ही रहते

काश हमें भी मिलती

वो मन ही मन में कहते।

दूँगी उन्हें भी मैं 

आज राखी और मिठाई।

भैया माँग रही हूँ

मैं वचन तुम निभाना

आओ जब भी इस डगर से

इन बच्चों से मिलकर जाना

मेहनत और लगन से

मिलती है मंजिल इन्हें बताना।

किताब और कॉपी

देकर इन्हें तुम आना

देते हो साथ मेरा

इन्हें विश्वास देकर आना

सपने होंगे इनके पूरे

ये तुम आस जगाकर आना

इस बार राखी में भैया

मेरी चाह ये पूरी करना

इस बार राखी में मैं

यही सपना सजा रही हूँ

आ रहा है राखी का त्योहार,

माँ मैं राखी बना रही हूँ।


रचयिता
दीपा कर्नाटक,
प्रभारी प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय छतौला,
विकास खण्ड-रामगढ़,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।



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