संत पुस्तकें

बुद्धि को जो शुद्धि दे,

सद्ज्ञान संस्कार दे।

वो संत हैं ये पुस्तकें,

सत्संग चमत्कार दें।


असभ्य दुष्ट भ्रष्ट भी,

संभ्रांत सभ्य बन गये।

कालजय न कर सके, 

जो ज्ञान से विमुख हुए।


जीवन की मार्गदर्शिका,

गुरू का प्रतिरूप है। 

सन्मति की दे छाया,

भ्रम की जहाँ धूप है।


ये अमर्त्य अलौकिक,

युगों युगों हैं जीतीं।

मानव के लिए अमृत,

हैं सत्य की प्रतीति।


अपराधभाव अवगुण,

तज दे, पढ़े जो मानव।

पुस्तक है वो मनस्वी,

अंतस का मारे दानव।


सद्ज्ञान भरी पोथी,

जीवन की दिशा बदले।

बन जाए शिष्ट मानव,

पुस्तक से मार्ग निकले। 


रचयिता

दीप्ति सक्सेना,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कटसारी,
विकास खण्ड-आलमपुर जाफराबाद,
जनपद-बरेली।


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