आ जाओ पालनहारी

कमल नयन श्री राम सुनो,

हे अवध के पावन धाम सुनो,

बिलख बिलख कर तड़प रही है,

सृष्टि कुपित है सारी, आ जाओ पालनहारी।


हे रघुकुल नंदन कृपा करो,

पीड़ित भक्तों की व्यथा हरो

रावण से मुक्त किया था तब,

अब काल से फिर अवमुक्त करो।

गीत प्रलय का चीख चीखकर,

गाती है सुकुमारी, आ जाओ पालनहारी।


माता से सुत, सुत से माता,

हो रहे विलग जग के दाता,

कण कण में काल का साया है,

घनघोर अंधेरा छाया है।

रिस रिस कर आँखों से बह गई,

खुशियाँ जीवन की सारी, आ जाओ पालनहारी।


हे दशरथ नंदन हरो पीर,

चुक गया हृदय में भरा धीर,

हर नेत्र की तुम ही आशा हो,

पुण्यों की संचित अभिलाषा हो,

एक एक नर नारी शिला बनी,

अब तारो तारणहारी, आ जाओ पालनहारी।


देर करो न कौशल्या सुत,

मिट रही संस्कृति सारी,

आ जाओ पालनहारी, आ जाओ  पालनहारी।


रचयिता

सीमा मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय काज़ीखेडा,
विकास खण्ड-खजुहा,
जनपद-फतेहपुर।



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