पुस्तक की फरियाद

 दे रही एक अरसे से 

वो सबको दर-दर दस्तक।

है वह सबकी मित्र सखा 

दराज में पड़ी वो पुस्तक।


मोबाइल तक सिमटी उँगलियाँ

ना लिखे कब से कोई खत।

आँखों की नमी बनते थे 

कभी बनते थे चेहरे की हसरत।


किताबें जिसमें होती थी कहानी-किस्से

अब नहीं रहे वो बचपन के हिस्से।

वह चित्रों वाली किताब बहुत पसंद थी

पढ़कर मुस्कुराती जिसे जिन्दगी मन्द-मन्द थी।


पुस्तक के पन्ने पलटना वो आवाज

आज भी कर लो तुम उसे याद।

पुस्तक की चाह स्पर्श हाथों की 

कर रही हर पुस्तक फरियाद।


रचे गए इसमें गीता वेद और पुराण

लिखे गए इसमें बाइबिल और कुरान।

पुस्तक हैं ज्ञान का भंडार जीवन-सार

आत्मसात कर इन्हें जीवन में लो उतार।


पुस्तक की जगह आया गूगल

मची जीवन में सबकी हलचल।

हज़ारों बातें कहकर पुस्तक शांत मौन थी

आरजू बस इतनी दोस्त बनो मेरे पढ़ लो मुझे।


वरना आने वाली पीढ़ी पूछेगी.....

पुस्तक कौन थी?

पुस्तक कौन थी?


रचयिता 
मोनिका रावत मगरूर,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय पैठाणी,
विकास खण्ड-थलीसैंण, 
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।





Comments

  1. बहुत ही सुन्दर , सच में बचपन में पुस्तकों को बढ़ने का जो मजा लिया ओ आज आपकी कविता को पढ़कर जीवंत हो गया । 🙏🙏

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    1. आभार....जी बिल्कुल बेहतरीन यादें हैं हमारे पास किताबों जिनसे आजकल की पीढ़ी महरूम हो रही है....🙏🙏📖📖

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  2. Good job Monika..... 👍👍🙏🙏

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  3. बहुत सुन्दर।पुस्तक की फरियाद कविता से अपने ज़माने की याद ताजा हो गईं।जब हम कक्षा 3 में होते थे तो कक्षा 5 तक की कविताएं कंठस्थ रहती थी।अब तो मोबाइल का जमाना आ गया। आखिर पुस्तक की फरियाद लाजमी है।। सुन्दर कविता के लिए बहुत बहुत धन्यवाद बहिनजी।

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    1. बहुत बहुत आभार....🙏🙏💐💐

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  4. बहुत ही अच्छी कविता

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    1. बहुत बहुत आभार..💐💐

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