पृथ्वी दिवस

है विशाल ब्रह्मांड हमारा, 

जिसमें छोटा सा ग्रह पृथ्वी।

हैं निवासी हम सब उसके,

पुराणों में जो माँ हम सबकी।।


माँ को हमने खूब सताया,

धरती का क्यों बोझ बढ़ाया।

छीनकर जीव जंतु वनावरण,

ग्लोबल वार्मिंग को अपनाया।।


हरी भरी हरियाली इसकी,

 मानव का बन गई शिकार।

किया प्रकृति का दोहन हमने,

कुछ सोचा भी ना एक बार।।


सुनामी जैसी त्रासदी आई,

हिमखंड भी पिघले।

केरल की बाढ़ के भीषण दृश्य,

आँखों से अभी ना बिसरे।।


अब तो चेत जाओ मानव,

दे रही पृथ्वी है चेतावनी।

असंतुलन को संतुलित करने,

धरा को तनिक ना देर लगानी।।


पर्यावरण संरक्षण की खातिर,

पृथ्वी को  स्वच्छ बनाने की।

की पहल थी जेसल्ड नेल्सन ने,

1970 से पृथ्वी दिवस मनाने की।।


आओ मिलकर वृक्ष लगाएँ,

 वृक्ष हैं पृथ्वी का श्रंगार।

आया पृथ्वी दिवस मानव,

 पुनः करो कृत्यों पर विचार।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।



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