वनाग्नि

 अभी --अभी तो आया था, 

         पतझड़ बाद मृदुल बसन्त। 

 नव पल्लवों से सज्जित हुआ था, 

       वसुंधरा का रीता गात। 

नव सृजित वसुधा का रूप देख  

       पशु -पक्षी जीव -जंतु  थे मुदित। 

 धरा का रूप -यौवन देख, 

       तन -मन था सबका आनन्दित। 

अभी नयन -भर प्रकृति की, 

       छटा भी नहीं थी निहारी। 

ना जाने किस  निर्दयी जन ने, 

    डाली वन में क्यों चिनगारी। 

 पलभर में धधकने लगा वन, 

     तडफने लगा मूक जीवन। 

धू -धू करते वन --कानन, 

     देख सिहर उठा वन्य जीवन। 

निरीह, असहाय मूक जीवन, 

      कर रहा था करुण -क्रंदन। 

 धरती बनी श्मशान सम, 

      धुँआ --धुँआ हुआ गगन।    

व्यथित मन  सजल नयन, 

    'विमल'  पूछे एक ही प्रश्न? 

मानव करनी का फल 

    क्यों भुगत रहे वन और वन्य -जीवन? 


रचयिता

विमला रावत,
सहायक अध्यापक,
राजकीय जूनियर हाईस्कूल नैल गुजराड़ा,
विकास क्षेत्र-यमकेश्वर,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।



Comments

  1. waaah ! outstanding lines ma'am 👍👏🎉🙏🌷🌷🌷

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  2. Bahut sunder satya baat....hamari kerni ka fal jeev jantu kyu bhugat rahei hai....very nice mam

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  3. बहुत खूब लिखा है, वन सम्पदा को नष्ट करना आपदा लाना है👌 💐🙏😊

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