हर घर बुलाता है

रोशनी से घर सजाने को
दीपक काम आता है।
तिमिर की सघनता को
अकिंचन ही मिटाता है।

अशिक्षा का जाल व्यापक
प्रगति अवरोध पथ पर।
सुसंस्कृत सभ्य जीवन की
हुई है आस दुष्कर।

प्रबुद्धों मिल विचारो अब
समस्या क्यों गहन इतनी।
गरीबी है या विवशता है
कहाँ जड़ और जननी।

विवेकी इंसान को गढ़ने
समय हमको बताता है।
चलो हम रोशनी बाँटें
हमें हर घर बुलाता है।।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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