अक्षर पहचान कैसे सुगम हो

(साथियों के विचारार्थ एक प्रयोगात्मक विचार)

अक्षर की बनावट, 
उसका उच्चारण 
और 
तत्सम्बन्धी चित्र; 
इन तीनों का आपसी संबंध जितना अधिक घनिष्ठ होगा, बच्चा उतनी ही जल्दी अक्षर-पहचान कर सकेगा।

ऐसे में जब हम 'ट से टमाटर' या 'टमाटर वाला ट' पढ़ाते हैं तो चित्र का अक्षर की पहचान से कोई समन्वय नहीं होता क्योंकि न तो टमाटर की आकृति ट जैसी है और टमाटर वाला ट लिखने या बताने से भी समस्या नहीं सुलझती क्योंकि टमाटर की लिखावट से बच्चे को क्या मतलब, जब उसे ट की ही पहचान नहीं है।

उपाय यह हो सकता है कि 'चित्र से अक्षर की बनावट का संयोजन' बच्चे के दिमाग में बैठाने के लिए हम उस अक्षर की बनावट वाली वस्तु से ही उस अक्षर को जोड़ें। 

उदाहरण के लिए, 
'हुक' वाला ट, 
'खुरपी' वाला ज, 
'पेंडुलम' वाला ठ, 
'ऊँची-नीची मूँछ' फ,  
'घोड़े की नाल' वाला U, 
'चिमटे' वाला V, 
'चूड़ी' वाला O, 
'गुणा'  वाला X, 
'स्केल' वाला I, 
'छाते की रॉड' वाला J, 
'सीढ़ी' जैसा H, 
आदि आदि

और चूँकि हिंदी वर्णों की जटिल आकृति के कारण हिंदी में ऐसे चित्रात्मक संयोजन मिलने कठिन हैं तो हम वैकल्पिक रूप से रस्सी द्वारा या किसी अन्य विधि से तत्संबंधित आकृतियाँ बनाकर, दिखाकर, अक्षर से उनको जोड़कर उनके दिमाग में बैठा सकते हैं ताकि जब भी उन्हें अक्षर पहचान करनी हो तो उनके दिमाग में वह आकृति चित्र उभर आये और उसके माध्यम से तत्काल उनके दिमाग में उस अक्षर की ध्वनि याद आ जाये।

ऐसा ही हिंदी की मात्राओं के साथ भी किया जा सकता है।

शायद युक्ति काम कर जाये।

लेखक
प्रशांत अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय डहिया,
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी,
जिला बरेली (उ.प्र.)।

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