इस जल का संचयन करो

आई छम से बरखा रानी
लाई झमाझम ठंडा पानी।
चारों तरफ छाई हरियाली
धरती की है छटा निराली।

चुन्नू   मुन्नू बच्चे   सारे
नहा रहे होकर मतवाले।
छत पर और सड़क पर पानी
उफ़न रहे हैं नाली नाले।

आसमान में बिजली चमकी
जोर से गरजे बादल दादा।
जाओ बच्चों घर के अंदर
पानी बरस रहा अब ज्यादा।

धरती बोली ये जल अमूल्य है
इसको बेकार न करो बहाकर।
इस जल का संचयन करो
सोकपिट और तालाब बनाकर।

ये जल अमृत के सामान है
पैसों    में  न आएगा  ।
यदि इसको बर्बाद किया
तो ये हमको तरसाएगा  ।

रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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