बचपन कैसा होता है

खेल खेल में एक दिन,
एक बच्चे ने मुझसे पूछ लिया,
यह बताइए मैडम जी,
यह बचपन कैसा होता है ?

बच्चे की इस जिज्ञासा ने,
मेरे मन को हिलोर दिया,
बचपन कि सोयी यादों को,
जैसे किसी ने भिगो दिया|

मासूम कि नन्हीं-नन्हीं आँखें,
मुझको यूँ ही निहारती रहीं,
फिर नन्हें हाथों ने छूकर,
सपनों से जैसे जगा दिया|

बचपन को जानने की जिज्ञासा,
बच्चे के मन मे प्रबल रही,
हाथ पकड़कर बच्चे का,
समझाने उसको मैं,बचपन चली,

बचपन है गुड्डे-गुड़ियों का खेल,
बचपन है ईद-दिवाली का मेल,
बचपन है शोर-शराबे का,
बचपन है अपनी जिद्द मनवाने का|

बचपन है रुठने-मनाने का,
बचपन है गिरकर उठ जाने का,
बचपन मे कोई भेद नही,
बचपन का कोई धर्म नही,
बचपन का हर बच्चा-बच्चा,
दिल का बहुत ही सच्चा है|

अब समझे तुम नन्हें बच्चे,
बचपन कैसा होता है?
जी,समझ गया मै समझ गया,
बचपन मुझ जैसा होता है|

रचयिता
वंदना प्रसाद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कैली,
विकास खण्ड-चहनियां,
जनपद-चंदौली(उत्तर प्रदेश )

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