रुदन करती है हरियाली
ऐ धरा के श्रेष्ठ प्राणी!
नि:सन्देह तू सभ्यता और बुद्धि में महान है
लेकिन याद रख,
मुझसे ही तेरी पहिचान है।
ऑक्सीजन तेरी प्राणवायु,
कारण मेरा व्यक्तित्व है।
जब तक साथ हूँ तेरे,
तब तक तेरा अस्तित्व है।।
तू चाहकर भी मुझे नहीं रोक सकता
क्योंकि तुझे उन्नति की मिसाल गढ़नी है।
सारी वन सम्पदा को नष्ट कर,
मौत की किताब पढ़नी है।।
हर वर्ष 5 जून को,
पर्यावरण दिवस का हो हल्ला मचाओगे।
कल से मेरा परिवार नष्ट कर,
अपना बसाओगे।।
कुछ लोग मान भी जाएँगे,
कविता, कहानी और फिल्म बनाएँगे।
लेकिन सरकार ....
पौधे बाँटकर, योजनाएँ बनाकर,
मुँह मोड़ लेगी।
सड़कें, कार्यालय, हवाई अड्डे, कालोनियाँ
बनाकर तथाकथित सुखों से जोड़ देगी।।
हम दोनों को ही एक - दूसरे से खतरा है।
संग भी बेजोड़ कतरा - कतरा है।।
यह कहते ही रुदन करने लगी हरियाली।
कहाँ रहेगी मेरे बिन तेरी खुशहाली।।
एक मंत्र मैं आपको बताऊँगी।
अपने साथ ही तेरा भविष्य सजाऊँगी।।
शासन स्तर पर नियम बने,
या तू खुद बनाए।
आवासीय क्षेत्रों की रजिस्ट्री के साथ ही,
नक्शे में कम से कम दो पेड़ों की जगह सजाएँ।।
उल्लंघन पर रजिस्ट्री खारिज कर,
पौधशाला लगा दी जाए।
बिना पक्षपात,
कड़ी से कड़ी सजा दी जाए।।
जिनके पुराने घर, जमीनों पर,
न लगे हों कुछ पेड़,
गैस, तेल, बिजली की आपूर्ति बन्द कर, कुर्की कर लें
खत्म कर दें रिश्तों की मेड़।।
तभी आसूँ रुकेंगे,
रुदन करती हरियाली के।
कुछ दिन और बढ़ जाएँगे,
तेरी खुशहाली के।।
रचयिता
कवि सन्तोष कुमार 'माधव',
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सुरहा,
विकास खण्ड-कबरई,
जनपद-महोबा।

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