धरती की पुकार

हरी-भरी थी जो धरा कभी

अब धूल-धुआँ से भर गई।

पेड़ों की ठंडी छाँव जहाँ

अब राहें सुनसान हुई।


नदियाँ जो कल- कल करती थीं

अब पीड़ा व चीत्कार भरी।

नील गगन जो था नीला

अब उसमें प्रदूषित हवा भरी।


ओ मानव! अब भी जागो 

करो धरा फिर हरी- भरी।

पेड़ लगाओ, जल बचाओ

धरती होगी फिर निखरी।


पक्षी गाएँ फिर गीत मधुर

फूल महकें और बगिया भी।

बादल लाएँ फिर से सावन

चहुँओर दिखे फिर हरियाली।


एक दिन, एक प्रयास नहीं

समझें सब अपनी जिम्मेदारी।

पर्यावरण की रक्षा में

सबकी हो भागीदारी।


आओ मिलकर प्रण ये लें

रक्षा करें धरती माँ की।

हरियाली से इसे सजाएँ 

साँस बचाएँ जीवन की।


रचयिता
डॉ0 निशा मौर्या, 
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मीरजहांपुर,
विकास खण्ड-कौड़िहार-1,
जनपद-प्रयागराज।

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