पिता
साया बनकर साथ चलें
हर दुख जो चुपचाप सहें।
नहीं जताते प्यार वो अपना
बच्चों की खुशी में खुश रहें।
बच्चों के हों पूरे सपने
मेहनत तभी दिन-रात करें।
डाँट में भी छुपा होता प्यार
कभी हम पर सब कुर्बान करें।
पिता सिर्फ रिश्ता नहीं है
वो ही तो हमारा जहान बने।
मजबूती की मूरत जैसे
हर हाल में हमारे साथ खड़े।
थक जाएँ फिर भी मुस्काएँ
बिन बोले सब कुछ कहें।
बच्चों की मुस्कान में
अपना हर ग़म जो भूलें।
उनके बिना अधूरा जीवन
सपनों का वो आधार बनें।
पिता सिर्फ एक नाम नहीं
जीवन का वो ही उपहार बनें।
रचयिता
डॉ0 निशा मौर्या,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मीरजहांपुर,
विकास खण्ड-कौड़िहार-1,
जनपद-प्रयागराज।

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