योग दिवस
उषा कल की नवल रश्मियाँ,
करें यही पुकार,
अंतर्मन की श्वांस पहचानो,
करो सूर्य नमस्कार।।
ध्यान-योग का टूट विश्वास,
देता ऊर्जा भरपूर,
प्राणवायु प्रफुल्लित करें,
रखो तन-मन व्याधि से दूर।।
सप्त चक्र को जागृत करता,
योग का बड़ा है अस्तित्व।
स्वस्थ सुन्दर काया मिले,
निखरा-निखरा रहे व्यक्तित्व।।
निराकार शून्य से करो,
तुम मौन संवाद।
परमानंद अनुभूति मिले,
उत्तर है निर्विवाद।।
शांत चित अनुभूति को,
जोड़ो ऊँ के साथ।
एक बिंदु पर केंद्रित कर मन,
ऊपर उठाओ हाथ।।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
सहायक अध्यापक,
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।

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